इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने मां के सरकारी सेवा में रहने के बावजूद तथ्य छिपाकर पिता की जगह मृतक आश्रित में नौकरी पाए बेटे के पक्ष में एकलपीठ के आदेश पर रोक लगा दी है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति एमके गुप्ता और
न्यायमूर्ति अरुण कुमार की खंडपीठ ने पंचायती राज विभाग की ओर से दायर विशेष अपील
पर दिया।
बस्ती के जिला पंचायत राज अधिकारी
विभाग में राहुल के पिता नौकरी कर रहे थे। सेवा के दौरान उनकी मौत हो गई।
ऐसे में राहुल ने मृतक आश्रित कोटे से
नौकरी प्राप्त कर ली। बाद में विभाग ने राहुल की माता के सहायक अध्यापक के पद पर
नौकरी करने के तथ्य को छुपाने के आधार पर 28 अगस्त 2021 को उसकी नियुक्ति समाप्त कर दी।
राहुल ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी
तो एकलपीठ ने 18 अप्रैल 2025 के आदेश से उसके पक्ष में
फैसला सुनाया। वहीं, इस आदेश को पंचायती राज विभाग ने विशेष
अपील दाखिल कर चुनौती दी।
एकलपीठ के समक्ष याची का कहना था कि
नौकरी का फॉर्म उसने मृतक आश्रित कोटे के लिए भरा था। उसमें मां की नौकरी का
उल्लेख करने के लिए कॉलम नहीं था।
उसे नौकरी करते 10 साल से ज्यादा हो गए हैं। ऐसे में उसे
सेवा से हटाना गलत है।
वहीं, विशेष अपील में सरकार का कहना था कि
अनुकंपा नियुक्ति की शर्त है कि मृतक कर्मचारी का जीवनसाथी पहले से सरकारी विभाग
में कार्यरत न हो।
इस मामले में कर्मचारी की पत्नी पर दो जजों की पीठ ने कहा कि मृतक की पत्नी पहले से
सहायक अध्यापिका थी। इसके बाद भी उसके बेटे ने आश्रित कोटे में नौकरी के लिए आवेदन
किया।
नियमानुसार मृतक आश्रित कोटे की नौकरी
का आवेदन करने के दौरान परिवार की वित्तीय स्थिति का खुलासा करना चाहिए था। याची
कि ने मां के सरकारी सेवा में रहने का तथ्य छिपाया है।

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