इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विवाहित दिव्यांग संतान आजीवन पारिवारिक पेंशन पाने का हकदार है। बशर्ते वह बेरोजगार हो। इस अधिकार से उसे केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि वह विवाहित है।
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इस टिप्पणी संग मुख्य न्यायाधीश अरुण
भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने झांसी निवासी इफ्तिखार अली
की ओर से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण इलाहाबाद (कैट) के आदेश को चुनौती देने
वाली याचिका स्वीकार कर ली। साथ ही रेलवे विभाग को याची के दावे पर दो माह में
पुनर्विचार करने का आदेश दिया है।
याची के पिता रेलवे विभाग में कार्यरत
थे और वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 2015 में उनका निधन हो गया।
इसके पहले वर्ष 2009 में मां का भी निधन हो चुका था। याची
शत-प्रतिशत आंखों से दिव्यांग है।
पिता की मृत्यु के बाद उसने पारिवारिक
पेंशन का दावा किया जिसे विभाग ने 15 जनवरी 2010 के परिपत्र के आधार पर यह कहते हुए
खारिज कर दिया कि वह विवाहित है।
विभाग के इस आदेश पर कैट ने भी मुहर
लगा दी। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट ने कैट के आदेश को रद्द कर दिया।
कहा कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 54
(6) का
संशोधित स्पष्टीकरण स्पष्ट करता है कि विवाहित दिव्यांग पुत्र पारिवारिक पेंशन का
हकदार है। केवल विवाह के आधार पर दिव्यांग संतान के अधिकार को खत्म करना कानूनन
उचित नहीं है।
रेलवे बोर्ड के आठ जुलाई 2022 के पत्र और 2013 के आरबीई परिपत्र में यह स्पष्ट किया
गया है कि दिव्यांग पुत्र या पुत्री विवाहित होने पर भी जीवनभर पारिवारिक पेंशन
पाने के हकदार हैं। बशर्ते वे आजीविका अर्जित न कर रहे हों।
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